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Tuesday, May 31, 2011

प्रयास

कुमार विश्वास जी कि हर रचना कुछ ऐसे छू जाती है मन को कि अपने आप ही शब्द मन से फ़ूट पड़ते है। उन्हे तो शायद इल्म भी नही होगा कि उनकी रचना किसी को फ़िर से कलम उठाने की प्रेरणा दे जाती है…

रिवायते कुछ दुनिया की कुछ फ़र्ज़ की मजबूरियाँ है
कैसे चलूँ तेरी ताल पर मेरे पैरो के नीचे धरती बिछी है
तू कवि है तेरे तरन्नुम मे सपनो की फ़ुलवारियाँ खिलती है
मेरे नसीब के आसमां को सितारे भी नसीब नही है
तू नाप आसमां की ऊंचाईयों को मेरे दिल को अब चलने की आदत नही है

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