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Sunday, July 10, 2011

शाम

साज़िशे थीं वक्त की
दुहाइयाँ कुछ ज़माने की
के मिल ना पाए हम तुम
और ज़िन्दगी की शाम हो गई

Saturday, July 9, 2011

उदासी

अब यह कोहरा छ्टने दो
और उजाला बिखरने दो
मन मे गहन उदासी है
थोड़ी हँसी बिखरने दो

कितनी प्यास है यहाँ
स्वाति की एक बूँद ढलने दो
इन कोरी चादरो पर
कुछ सिलवटे सिमटने दो

तन्हा सी शाम हो गई है ज़िन्दगी
थोड़ी लालिमा घुलने दो
बहुत कुछ गुम गया है बीते पलो मे
यादों का कारवाँ फ़िर गुज़रने दो

Thursday, July 7, 2011

कुछ पंक्तियाँ

घर-आँगन  छूटा, गाँव छूटा, देश छूटा 
ये कैसी प्रीत मितवा ये कैसी प्रीत
उजले देश की उजली रीत
बंधी है पलकों में  फिर भी 
इस देस की पीर 


ज़िंदगी ने बदल ली हैं कई परते फिर भी
नाम तुम्हारा पन्नो पर उतर ही आता है
रोक लेते है कलम अकेले मे भी
कभी नाम इबादत का भी रुसवा हो ही जाता है


मुझसे मेरे ख्वाब उसी ने चुराए
खेल था जिसके लिए मेरी इबादत

जिन्हे समझा था अपना वो हो गये पराए
गैरों ने दी है सदा इस दिल को पनाहे मुहब्बत


तेरे इशक में हुआ है मेरी मदहोशी का आलम ये
की खबर नहीं की तुझे चाहती हूँ या सिर्फ तेरे ख्याल को




Sunday, July 3, 2011

तेरे उजाले


रात की चादर मे फ़ैले सितारे समेट लिये
मैने तेरे अन्धेरो के लिये उजाले चुन लिए

हवा ने आ कर कहा था कि तू उदास है
तेरे लिए मैने कई वसंत बुन लिए
मैने तेरे अन्धेरो के लिये उजाले चुन लिए

सावन ने बरस कर बताया कि तन्हा बैठी है तू
मैने तेरे लिए सप्त सुर गूंध लिए
मैने तेरे अन्धेरो के लिये उजाले चुन लिए

तू आ और मेरी ज़िन्दगी मे शामिल हो ज़रा
मैने तेरे लिए प्यार के सागर भर लिए
मैने तेरे अन्धेरो के लिये उजाले चुन लिए

3 ज़ुलाई 2011

Friday, July 1, 2011

माँ



इन पुराने कपड़ों से अब भी तुम्हारी महक आती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
घर छूटा, दर छूटा तुम्हारी साँस छूटी हर आस टूटी
उस उदास आँगन मे बसी तुम्हारी आवाज़ आज भी बुलाती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
मेरे बचपन के हिंडोले, वो खेल खिलौने
तुम्हारा गुस्से मे मुझे धौल धर देना
वो प्यारी याद अब भी मेरी पीठ सहलाती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
बहुत लड़ती थी तुम्हारी एक बात नही सुनती थी
फिर भी तुम्हारी हामी पर तन मन से पुलकती थी
तुम्हारी स्नेह भरी नज़र अब भी मुझे हौसला देती  है
मेरी हर कथनी करनी पर तुम्हारी सहमति जड़ देती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
जग के किस कोने मे तलाशूँ मैं तुझे
कहाँ से मिले फिर वो फटकार मुझे
कैसे मिले तेरे आँचल की छाँह मुझे
हम माँ बेटी मे झलक कभी तुम्हारी दिख जाती है
उसकी तुतली बातें मुझे तुम्हारे संग अपनी याद दिलाती हैं
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
मनीषा