Pages

Saturday, July 9, 2011

उदासी

अब यह कोहरा छ्टने दो
और उजाला बिखरने दो
मन मे गहन उदासी है
थोड़ी हँसी बिखरने दो

कितनी प्यास है यहाँ
स्वाति की एक बूँद ढलने दो
इन कोरी चादरो पर
कुछ सिलवटे सिमटने दो

तन्हा सी शाम हो गई है ज़िन्दगी
थोड़ी लालिमा घुलने दो
बहुत कुछ गुम गया है बीते पलो मे
यादों का कारवाँ फ़िर गुज़रने दो

No comments:

Post a Comment