Pages

Thursday, November 10, 2011

सूरज


माना मैं  ढलता सूरज हूँ 
 डूब कर भी तेरे चाँद को रौशन कर जाऊंगा 
बस इतना सा ही नहीं है मेरा फसाना 
इन अंधेरों के पार फिर मुझे इक सुबह को रौशन करना है 

No comments:

Post a Comment