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Wednesday, April 18, 2012

मेरी इन लकीरों में पीरों को दिख जाते हो

तुम बिछड़े हुए मीत से 
मेरी  इन लकीरों में पीरों को दिख जाते हो
हर कोई पूछ बैठता है किसे खो दिया था तुमने 
और मन विकल सा फिर भी तुम्हे नकार  जाता है
एक टूटे हुए सम्बन्ध से 
तुम मेरी हथेलियों में  रच गए हो, उस मेहँदी से 
जो शहनाईयो की गूँज में कभी धुल गयी 
उम्र भर बस एक सवाल से तुम मेरे भीतर घुमड़ते हो 
उन बादलों से ओस से हर रात बरसते रहे 
इन आँखों में  जाने कितने पतझड़ समाए 
सावन आया भी  था कभी, पता ही न चला इन्हें 
और अतीत में उलझे हम अपने अपने वर्तमान जीते रहे 
manisha

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