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Friday, November 30, 2012

गरीब का ईमान


सोचता हूँ ईमान बेच कर एक सूट सिल्वा सकता अगर
मगर गरीब का ईमान भी तो सस्ते में ही  बिक जाता है
उतने दाम में शायद आ जाए भर पेट एक शाम की रोटी
दिन भर गुहार लगी मैंने "मैं भूखा हूँ " कह दया याचना की मैंने
पर सबने मुझे आवारा शराबी समझा
मेरे ठिठुरते तन को नशे में झूमता समझा और बढ़ गया
हर सेठ कह कर आगे बढ़ जाता है "कुछ काम करो भाई "
पर काम के लिए चाहिए एक निश्चित पता
और पेट में एक समय की रोटी
मैं आज भी भूखा हूँ , कल भी भूखा ही था
कब तक ये सर्द रात बर्दाश्त करूँ  मैं
जाने कौन था जो इन सब को ठग गया
और दान को पाप कर गया
कल सोचता हूँ क्या करूँ मैं
फिर से दया याचना या फिर छिना झपटी की राह लूं मैं
सोचता हूँ कल क्या करूँ मैं

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