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Saturday, December 29, 2012

दामिनी

तेरी हैवानियत के आगे मेरी ज़िन्दगी  हार तो जाती है 
पर नही मिट्टी फिर भी ये जीने की चाह 
तू रौंद तो सकता है तन को मेरे 
पर मेरे वजूद को कुचल सके वो ताब तुझमे नही है 
मैं मर ही  गई तो क्या 
मुझ पर तूने सियासत कर भी ली तो क्या 
मुझे चुनवा दे चाहे तू अपनी मिनारों  में तो क्या 
मैं तेरे इतिहास के हर पन्ने से 
उभर आऊँगी 
मैं इस मिट्टी में मिल कर 
इस मिट्टी की बेटी बन उग आऊँगी 
तू मेरे एक अस्तित्व को नकार सके तो नकार 
मैं तुझे हर घर हर चौराहे पर खडी मिल जाऊँगी 
तू मुझे मिटा सके तो  मिटा 
मैं तेरे भीतर 
तेरी आत्मा की आवाज़ बन जाऊँगी 
मनीषा 

2 comments:

  1. aisa kyu hai ke...
    hame jagne ke liye hamesha kisi ka marna jaroori hota hai

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    1. jaagne se jyada ekjut hone ke liye...ye issue to hum girls roz face karti hain aaj bhi meri beti 5 minute late ho jaaye to mera kaleja baith jata hai. aasan nahi hai is sheher me jeena.

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