मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Sunday, December 30, 2012
केदारनाथ
जब फलक तक दुआ उठे और नामंजूर हो जाए
क्या करे इंसान जब खुदा ही मजबूर हो जाए
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