Pages

Thursday, December 6, 2012

मुझे चाहिए एक घर

मुझे चाहिए एक घर
जिसके आंगनमे उगती हो उषा
और खिड़की से रोज निकलता चाँद हो
मैं तुम्हारा मकान लेकर क्या करूँगी
जहाँ हर किसी का अपना एक कमरा है सुसज्जित
अपने में स्वच्छ और सम्पूर्ण
मुझे तो चाहिए एक घर
वह घर जहाँ
हर कोई एक हाथ की दूरी पर हो
जहाँ पढ़ी हो सबने एक दुसरे  के मन की पाती
जहाँ सुबह किसी एक का गुनगुनाया हुआ गीत
सांझ तक हर एक के कंठ मे सजाता हो
उस घर में चाहिए  एक आँगन भी
जहाँ  रंग बिरंगे पंछी चुगते हो दाना
जहाँ रात में चादर ओढ़ सोता  हो कोई
और सुबह उस चादर में लिपटा
मिलता हो और कोई
एक  ही तकिये की खींचा तानी  में  गुज़रती हो रात
छिपी न हो एक दूसरे से कोई  भी बात
अलमारी पर धूल  चमकती हो
रोशनदानों से जाले  लटकते हों
पर चूल्हे पर प्यार की रोटी सिकती हो
बच्चों के हुल्लड़ से घर गुंजित रहता हो
बहुत मन मुटाव हो फिर भी दिलों में प्यार हो
सब सुख दुःख एक दूसरे से साझे हों
बोलो क्या तुम दे सकते हो मुझे एक ऐसा घर
जिसमे साथ निकलते, सूरज और चाँद हो।।

No comments:

Post a Comment