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Saturday, January 26, 2013

गुज़र जाते हैं

गुज़र जाते हैं हमारे बीच कितने 
अनकहे दिन अनकही  रातें 
कहो कब ख़त्म होंगी दीवारों से बातें 
नयन जब भी पा  जाते कुछ ऐसा 
जो हर्षित तुमको भी किया करता 
मन मचल जाता वहीं से 
तुमको पास बुलाने को 

पाँव   थम  जाते पर वहीँ कहीं 
बोल होंठो के कोरो पर ही घुट जाते 
प्यार कहीं गुम  हो जाता है 
जब 
यह क्रूर अहम  बीच  आ जाता है 
पहले तुम, के ख्याल में 
जीवन का मृदु क्षण गुम जाता है 

कितनी बीतीं स्मृतियाँ अतीत के 
पुलिंदों  में दफ़न  हुईं 
कितनी सूनी रातें सपनीली बातें 
सिर्फ करवटों में गुज़र गईं 
अब एक लम्बी सुनहली धूप चुराने का 
मन करता है 
चुटकी भर चाँदनी  बिखराने  का 
मन करता है 
शाम की इन उदास क्यारियों में 
एक नन्हा सुख उगाने का
 मन करता है 
आज फिर संग तुम्हारा पाने का 
मन करता है 

मनीषा 

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