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Saturday, January 5, 2013

आम आदमी

मैं आम आदमी हूँ 
मेरे नाम पर नहीं 
बना कोई मकबरा ,सिनेमा या मज़ार 
कहीं भूकम्प आए या बाढ़ या हो बम से धमाका 
तब अखबार के बिचले पन्नो में 
गणित की संख्या में छप  जाता हूँ 
सुर्खियाँ तो विरासत है खासों की पर, आंकड़ो में आबद्ध 
उन्ही की कुर्सियों के पाए बन कर खड़ा हूँ हर बार वोटों के मौस्सम में 
वे झाँक लेते हैं -पत्रकार, नेता या फिल्मकार 
मेरी और मेरे पाँव के नीचे चिपकी कीचड़ पर भी 
व्यक्त करते हैं भारी भरकम टिप्पणियाँ 
और मौसम की करवट पर चढ़ जाते हैं-रंगीन शीशे उनकी कारों  पर 
और मेरे सिर  पर तपती धूप 
कर देती है उनकी आँखों में एलर्जी 
और मेरे तन की चटखती धूल  से 
पद्द जाते उनके शरीर पर चकत्ते 
और वे अपनी इम्पोर्टेड कारों  में निकल जाते हैं 
फुर्र से 
मैं तो बस एक आम आदमी हूँ 
आम रस्ते सा 
गुज़र जाए जिस पर से हर कोई 
जूते खटखटाते 
मैं तो सिर्फ हिस्सा हूँ सरकार के हर बरस 
उम्दा होते आंकडों  का 
कहते  हैं बजट हो या संसद का तंत्र
 सब मेरी भलाई के लिऎ ही होता है फिर भी 
सड़क पर निरंतर बढ़ती भीड़ का 
मैं केवल एक अनचीन्हा ,धुंधला चेहरा हूँ 
हडतालो और शहर बंदी में टीवी  के आगे 
अखबार लिए ऊंघता -सामान्य सादा आदमी 
भोर  की पहली किरण पर हल-जोतता 
दफ्तरों की ओर  दौड़ता आम आदमी 
बजटों  संसदों  महंगाई की मार झेलता -आम आदमी 
उपले थापता -लकड़ी के चूल्हे पर रोटी सेंकता -आम आदमी 
मंदिरों-गिरजों -मस्जिदों में सजदा करता -आम आदमी 
कानूनों -नियमों  -समाजों  के दर से बंधा -आम आदमी 
अपनी ही दिनचर्या में उलझा 
मशीन सा सत्ता का उलट  फेर देखता 
झूट का सच होता सच का झूट होते देखता
 मात्र  एक आम आदमी हूँ मैं 

मनीषा 

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