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Tuesday, January 8, 2013

प्रजातंत्र

भाई भतीजावाद में 
जनता पिस रही है 
बेटे औ' साले की फ़िक्र में 
सत्ता चल रही है 
पूंजीवादी की जमानत 
रातो रात हो रही है 
सत्ता की चालों में 
जनता की मात हो रही है 
सोना हो चुका है स्मगल 
ताज की सोच रहे है
बारी है फिर हिम की
 गंगा में पाप धो रहे हैं 
सर्व उत्थान  के सपने में 
बीबी के अलंकार बन रहे है 
रिश्वत के केस से 
रिश्वत दे कर छूट रहे हैं 
सांसदों में कुर्सी फेंक फेंक 
देश को उठा रहे हैं 
हमारे ये खद्दर धारी 
सिर्फ पूंजी बना रहे हैं 
देश की समस्याएँ 
विदेशों में सुलझा रहे हैं 
कुछ और नही तो 
उत्सव ही मना रहे हैं 
रूपये  की चमक से
शोहरत चमका रहे हैं 
पीढीयों के लिए 
टैक्स दबा रहे हैं 
डाक्टरों का अकाल है शायद 
इसीलिए इलाज 
विदेशों में करा रहे हैं 
इसे वो ज़रूरी 
कांफ्रेंस बता रहे हैं 
हर चैनल पर यह 
अपनी बेवकूफी दिखा रहे है 
और फिर कहते है 
हम देश चला रहे हैं 
कुर्सी के लिए 
ईमान गंवा रहे हैं 
ये लोग इसे 
प्रजातंत्र बता रहे हैं 
मनीषा 

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