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Friday, June 7, 2013

एक सोच :क्या फर्क पड़ता है

हम जाते हैं 
अफ़सोस जताने और करते है 
बहुत वाद विवाद उस पर जो 
जाने क्यों ज़रूरी है 

"चूड़ियाँ तोड़ दो 
बिछिये उतार दो 
बिंदी सिन्दूर मिटा दो 
चूल्हा मत जलाना 
बेटी से मत उठवाना 
जिस रस्ते गए थे 
उस रस्ते मत आना 
कपड़ा  मत धोना 
नया मत पहनना 
यह मत खाना 
अरे तुम  मत पकाना "

क्या फर्क पड़ता है 
इस  सब से 
क्या जाने वाला लौट आता है ?
मृत्यु हार जाती है जीवन से ?
इतने नियमों के पालन से 
संस्कारों को जीने मरने का प्रश्न मत बनाओ 
केवल उत्तरदायित्व निभाओ 


किस वेद  में लिखा है 
किस उपनिषद में 
मन को दुखाना उचित है?
फिर भी हम निभाते जाते है 
जाने किस मोक्ष के भ्रम में 
करते जाते हैं अनाचार 
वाद विवाद 
उस पर जो शायद अब सिर्फ रूढी  है 

बस करो , मन दुखता है ...
करो सिर्फ उतना जो ज़रूरी है 
एक नया जीवन 
जीने के लिए 
मनीषा 

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