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Saturday, December 21, 2013

अपने प्यार से मुझे बाँधो मत

अपने प्यार से मुझे बाँधो  मत
लौट जाने दो
तुम्हारे शुभ्र उज्ज्वा कांतिमय प्यार की धूप  में
कुछ इस तरह भीग गई हूँ मैं
कि भूल ही जाती हूँ मैं
के तुम्हारे इस बंधन से अलग
मेरा कोई अस्तित्व भी है
इसलिए इससे पहले भूलूँ  मैं
वह जिसे याद करते ही
मेरे पास आ बैठते हैं
क्षोभ , लोभ ग्लानि और विषाद  से घिरे
कुछ खट्ट मिठ्ठे से पल
तुम मुझे लौट जाने दो
वहीं जहाँ  मैं  छोड़ आई हूँ
कुछ रेशम  के धागे
स्नेह भरे दायित्वों  से रंगे
जिन्हे बुन कर ही तैयार करना है
मुझे संसृति से संस्कृति  तक एक सेतु
क्योंकि तुम्हारे प्यार के  इंद्रधनुष के पार भी
 एक  क्षितिज है
जहाँ  कर्म की धरती पर
जीवन तना  सा खड़ा है
मेरा इम्तिहान लेता
एक अनंत रण  का पैगाम लिए
by me मनीषा

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