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Thursday, January 9, 2014

बहुत दिन हुए तुम्हारा नाम लिखे

बहुत  दिन हुए तुम्हारा नाम लिखे कोरे पन्नों  पर
कभी तरस जाती थीं  कलम पकड़े उँगलियाँ
नाम को तुम्हारे गीली स्याही में
और कभी कॉपी  के पन्नों  के पीछे
किताबों  के कोनों पर अक्षरों में
 उतर आता जो
झटपट स्याही ढाँप  देती थी मानों
आंचल से ढाँप  दिया हो तुम्हारा चेहरा
 पर फिर भी तुम्हारे नाम के तीन आखर
झाँकते   मुस्कुराते थे मेरे गालों  पर उतरी लालिमा में
और हार कर  कंपकंपाती उँगलियाँ
सहेज कर धीरे से वह  पन्ना फाड़ देतीं  थीं
जिस पर उतर गया था अनजाने में तुम्हारा नाम
और दुहराते उस नाम को वहीं  अधरों पर भींच लेती थी
और कदम, छिटक कर खुद ही चल देते थे
तुम्हारे ही ख्यालों में दूर कही
मनीषा

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