Pages

Tuesday, April 8, 2014

कुछ पंक्तियाँ


तेरे और मेरे जूनून में फर्क इतना सा है 
तेरे पास तेरी दुनिया है और तू मेरी दुनिया है 

**********************************
कैसे  विश्वास करूं
छिन्न भिन्न हो चुका  है जो
उसका फिर कैसे पुन: निर्माण करूं

***********************************
बार बार वही  बात करती हूँ 
मैं अपने भीतर के सन्नाटो  से डरती  हूँ 
कैसे भूल जाऊँ  आप बीती 
अब तेरे प्यार से भी मैं डरती  हूँ 
************************************
वक्त बदल जाए तो मौसम बदल जाते हैं 
लोग बदल जाते हैं अपने पराए बदल जाते हैं 
छोड़ इन बातों वादों और इरादों को 
मैंने देखा है कैसे सुबह और शाम के मंज़र बदल जाते हैं
मनीषा

***********************************

दो नन्हे हाथों  से थाम रख़ा  है ज़िंदगी ने मुझे 
वरना मौत ने तो भेजे हैं बेइंतहा पैग़ाम  मुझे 

No comments:

Post a Comment