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Thursday, July 3, 2014

तुम मेरे बचपन के मीत

तुम मेरे बचपन के मीत
जैसे भूला हुआ कोई गीत
अनमोल धरोहर जैसे मिल जाती है
तुम्हारे संग झूले की वो पींगे  याद आती हैं

दुनिया में भटक जो बातें खो गई थी
खुद को ही मैं जाने कब से भूल गई थी
पन्नों  में दबे फूलों  से जब डायरी कभी मेरी महक जाती है
तुम्हारे संग मुझे, मेरे परिचय की याद आती है

अपने चेहरे पर जाने कितने मुखौटे ओढ़े
बरसों बरस में जाने कितने स्वप्न भूले
थके राही  को जैसे अमराइयाँ मिल जाती हैं
तुम्हारे संग वही हँसी  दिल में उतर जाती है

मनीषा


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