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Monday, September 29, 2014

धीरे धीरे मिट रही हूँ

धीरे धीरे मिट रही हूँ
अंधेरो में अपने  घिर रही हूँ मैं

हौले हौले बिखर रही हूँ
कच्चे कांच सी चटक रही हूँ मैं

धीमे धीमे सुलग रही हूँ
अपनी ही आँच में पिघल रही हूँ मैं

आहिस्ता आहिस्ता बुझ रही हूँ
ज़िंदगी तेरी बाँहो में खो रही हूँ मैं

मनीषा

मेरी खिड़की पर पल भर चाँद टाक दो

मेरी खिड़की पर पल भर चाँद टाक दो
एक चाँद थोड़ी चांदनी
मेरे आंगन में श्वेत आभास
पीपल की टहनियों पर अटक जाए
थोड़ा शर्माए थोड़ा रिझाए
कुछ बतियाए
मुझे गज भर आकाश दो

नरम पुरवाई को पैजनियाँ बांध दो
 मृदु हास  थोड़ा सा प्यार
गुनगुनाती पवन  की प्यार भरी थाप
रूह में बांसुरी कोई  गुनगुनाए
दिल भरमाए कुछ सुनाए
मुझे एक गीत उधार दो

मेरे ख्वाबों को इक पल आँखे उधार दो
एक  आस थोड़ी सी प्यास
गहरी  नींद पल भर का साथ
वो एक आंसू जो पलकों में मुस्कुराए
इन थके पंखो  में उड़ान  उतर आए
पाँव में आज मेरे बादल उतार दो

मनीषा

Tuesday, September 23, 2014

कभी मैंने बांधा नहीं कभी तुमने जोड़ा नहीं

कभी मैंने बांधा नहीं कभी तुमने जोड़ा नहीं
इस तरह चलता रहा संबंधों का सिलसिला
कभी मैंने रोका नहीं कभी तुमने पुकारा नहीं
इस तरह बढ़ता रहा राहों पर फासला
कभी मैंने कुछ कहा नही कभी तुमने कुछ सुना नहीं
इस तरह बढ़ता रहा खामोशियों का साया
कभी मैंने डोर छोड़ दी कभी तुमने हाथ थामा नहीं
इस तरह खिंचता रहा लकीरों का दायरा
कभी मेरे शब्द तीर हो गए कभी तुमने नश्तर चुभो दिए
इस तरह चलता रहा आइनों  का टूटना
कभी मैंने बांधा नहीं कभी तुमने जोड़ा नहीं
इस तरह चलता रहा संबंधों का सिलसिला
मनीषा वर्मा

#गुफ्तगू

Wednesday, September 17, 2014

पथ पर चरण बढ़ाओ

पथ पर चरण बढ़ाओ भविष्य तुम्हारा है
तुम हो नव अंकुर कल का वसंत तुम्हारा है

कोटि कोटि मानस में
जीवन तुम जगाना
बंजर इस भूमि पर
आस पुष्प तुम खिलाना

उगते रवि की किरणों सी
आभ  हो तुम्हारी
कर्म करना वही
दोहराए जिसे संतति

फैले जग में तुम्हारा नाम
तुम बनो भारत की शान
आशीष रहे गुरूजन का
नाम रहे तुमसे कुलवंश का

मनीषा 

चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है
समेट ले बिखरे अर्थ
और चल पथ प्रतीक्षा रत है
कम नहीं  होती
पथ पर क्लांत धूप
हर पड़ाव से बाँध ले थोड़ी छाँव
और चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

मंज़िल कोई नहीं  तेरी
कदमों  से लिपटी है बस
अनुभव की कोरी धूल
तू साथ ले चल सर्व कंटक फूल
और चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

सृष्टि के प्रथम अहसास से
अंतिम श:वास  तक
चलना ही तो है जीवन
धर तू सिर  पर संबंधो की गठरी
और चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है

निश्छल निश्चिन्त तू चल
गंतव्य कोई नही तेरा
कर्म पथ ही बस  है प्रशस्त
सांसो की  अंतिम माला तक
चिता की अंतिम ज्वाला तक
तुझे चलना है
तू चल
चल बटोही पथ प्रतीक्षा रत है
मनीषा 

Monday, September 15, 2014

खाक़ हूँ

खाक़  हूँ ख़ाक़  में मिल जाऊँगी
छू  नहीं  पाओगे
हवाओं  में बिखर जाऊँगी
आँख से तुम्हारी
पानी की तरह ढुलक जाऊँगी
मुझमें  ही  ढूँढना  मुझको
अक्षर अक्षर में उभर आऊँगी
मनीषा 

Sunday, September 14, 2014

हिंदी दिवस है आज अभिव्यक्ति का एक पल चाहिए

भाषा की परिभाषा के लिए दिन चाहिए
हिंदी दिवस है आज अभिव्यक्ति का एक पल चाहिए
हमे आती है इस बात पर हंसी
आजकल हर बात पर एक दिन चाहिए
पिता हो माँ हो बेटा हो या बेटी
सगे सम्बन्धी हों या दोस्त
एहसासों की अभिव्यक्ति के लिए
भी एक दिन चाहिए
राजा हो या मंत्री कैदी हो या संत्री
कुर्सी का किस्सा हो या
किसी घोटाले का मुकदमा
झगड़ा हो या धरना
हर बात पर कहते हैं की दिन चाहिए
प्यार का दिन झगड़े का दिन
तीर्थ का दिन त्यौहार का दिन
जन्म का दिन शादी का दिन
काम का दिन बेकार का दिन
जिसे देखो उसे ही एक दिन चाहिए
रोज़ रोज़ की आपा धापी में मसरूफ इतने हम यहां
की अब तो मरने को भी हमे एक दिन चाहिए
मनीषा

Thursday, September 11, 2014

इस पार न संग चल पाये तो उस पार का भार मत लेना

इस पार न संग चल पाये तो उस पार का भार मत लेना 
मेरी अंतिम यात्रा समय तुम अपने काँधे पर मेरा भार मत लेना 

किस धर्म से संस्कार हों ,किस विधि से पिंड दान हो 
किस पल मेरा श्राद्ध हो, कितनी बार हवन-दान हो 
तुम लकीरों की फ़क़ीरी मत करना 
इस पार न संग चल पाये तो उस पार का भार मत लेना 

गंगास्नान अस्थि विसर्जन तो मात्र काया का होता है 
किस पक्ष देह उठे , किस घाट पर दाह मिले इससे क्या होता है 
मेरी इस मृत देह का श्रृंगार मत करना 
इस पार न संग चल पाये तो उस पार का भार मत लेना 

रूह मेरी यूं भी मुक्ति पा जाएगी 
मेरी संतान के चेहरे पर मुस्कान यदि खिल जाएगी 
मेरे जीवन साथी को क्षण भर विदा बेला मिल जाएगी
तुम मुझ पर अश्रु बर्बाद मत करना
इस पार न संग चल पाये तो उस पार का भार मत लेना

मनीषा

Sunday, September 7, 2014

शिकवा करूँ तो

शिकवा करूँ तो
उन पाक़ अहसासों की तौहीन होगी 
अश्क़ रोक लेती हूँ 

आँख से ढुलके तो उसको शिकायत होगी 
मनीषा