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Sunday, October 26, 2014

होती कितनी प्यारी त्यौहार की बेला सारी

होती कितनी प्यारी
त्यौहार की बेला सारी
वो गुज़रा वक्त अगर
लौट आया होता

उस घर की टूटी मुंडेरों पर
एक  दीप जलाया होता
तुलसी तो कब की सूख चुकी पर
उस देहरी पर शीश नवाया होता

उस सूने दरवाज़े पर
वंदनवार सजाया होता
माँ के उस छोटे से मंदिर में
बाल गोपाल बैठाया होता

कितने सजते रंगोली
के ये रंग सारे
हमने तुमने अगर
हर त्यौहार संग मनाया होता

मनीषा



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