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Sunday, March 8, 2015

कहां है किसी भी संस्कृति में मेरा स्थान

सच कहते हो
हाँ सच ही तो कहते हो
कहाँ है भारत की इस महान संस्कृति में
स्त्री का स्थान
कभी गढ़ दी गई देवी कह पत्थर की प्रतिमा में
कभी सीता बन कर भूमि में समाने को हो गई विवश
द्रौपदी का चीर , सीता का हरण
पौरूष की व्याख्या से ढक देते हो
और कितनी अग्नि परीक्षाएँ लेते हो
सच कहते हो
हाँ सच ही तो कहते हो
कहां है किसी भी संस्कृति में मेरा स्थान
सर से ले कर पाँव तक
सब श्रृंगार तुम्हारे नाम के जड़ देते हो
एक चुटकी सिन्दूर से
अस्तित्व की पहचान बदल देते हो
मेरे सब नाम बदल देते हो
जहां जन्मती हूँ उस आँगन को पराया कहते हो
जहाँ डोली से उतरती हूँ उस घर को अपना ही कहते हो
सच कहते हो
हाँ सच ही तो कहते हो
कहां है किसी भी संस्कृति में मेरा स्थान
सारे घर में सबका कमरा होता है
कोई बताए माँ का कमरा कौन सा होता है
माँ रहती है चौके से पूजा घर तक सीमित
खाना बनाना , घर सम्भालना उसी का दायित्व होता है
ऑफिस से घर तक सिर्फ दायित्व सुना देते हो
बहुत एहसान है जो प्रसव के बाद छः माह छुट्टी दे देते हो
सच कहते हो
हाँ सच ही तो कहते हो
कहां है किसी भी संस्कृति में मेरा स्थान
बस में मेट्रो में दो सीट सुरक्षित कर देते हो
दस डब्बों में एक अलग कर देते हो
बाहर निकलने का समय तय कर देते हो
और क्या पहनूँ तुम तो बुर्के में भी नंगा कर देते हो
उम्र मेरी चाहे हो दो या अस्सी तुम तो
मुझे सिर्फ योनि तक सीमित कर देते हो
सच कहते हो
हाँ सच ही तो कहते हो
कहां है किसी भी संस्कृति में मेरा स्थान
मैं अबला हूँ इसका अर्थ एक पंक्ति से बदल देते हो
क्या खाऊँ क्या खरीदूँ कितना पढ़ूँ कहाँ जाऊँ
किस से मिलूँ कब हँसू कितना बोलूँ
किसके संग जीवन बिताऊँ
तुम तो सब आयाम निश्चित कर देते हो
आँख खुलने से आँख बंद होने तक
अपने अहम में मेरी जुबां खामोश कर देते हो `
गार्गी, अपाला, घोषा, लोपामुद्रा के उदाहरण भुला दिए
रूपकुँवर की स्मृति में मंदिर बना जिन्होंने करोड़ों कमाए
जिस देश में इन्दिरा जैसी बेटी राज कर जाए फिर भी
कल्पना चावला सिर्फ एक अपवाद कहलाए
प्यार के नाम पर किसी लक्ष्मी पर कोई एसिड उड़ेल जाए
साल भर की बिटिया भी दामिनी की तरह तड़प तड़प मर जाए
उस संस्कृति में सच ही कहते ही
हाँ सच ही तो कहते हो
कहाँ है वहां स्त्री का स्थान
सच कहते हो
हाँ सच ही तो कहते हो
कहां है किसी भी संस्कृति में मेरा स्थान
मनीषा

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