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Sunday, May 3, 2015

माँ का घर भाभी का आँगन

माँ का घर भाभी का आँगन
सखियों का साथ
वो झूलों की ऊंची ऊंची पींगें
वो रात भर चहकना
वो दिन भर मटकना
वो हमारे नाज़ और नखरे
वो दादी का 'हाय राम! ये लड़की!' वाली घुड़कियाँ
वो गिट्टे वो टप्पे वो माँ की साड़ियाँ
वो चादर ढकी मेज़ के नीचे  वाली दोपहरियां
वो गुड़िया की  शादी  पर सखियों से लड़ाईयां
हम और हमारी कारगुजारियां
वो माँ का चोरी से आँखें दिखाना
वो पापा की आड़ में डांट से बच जाना
वो चाचू की साईकिल पर
पूरी दोपहरिया गली में चक्कर लगाना
वो बुआ का आना
और सारे घर का खिलखिलाना
बहुत याद आता है
बचपन की नटखट गलियों में
हर बार खींच ले जाता है
ये आँगन में लगे
आम के दरख्त पर बौर का आना
मनीषा

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