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Sunday, October 11, 2015

फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की

कड़क खादी कुर्तों में सजे हैं
फिर से कतार बांधे खड़े हैं
गली कूचों में नेता अभिनेता
हाथ जोड़े खड़े हैं
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की 
कौन सी आपदा पिछली सरकार की वजह से फूटी है
शहर में बिजली पानी की कितनी कमी है
महिला विकास की बात फिर उठी है
एक दुसरे के कच्चे चिठ्ठे गिनाने लगे हैं
किसने किए कितने घोटाले सभी बताने लगे हैं
लगता है 
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की 
लगा लेते हैं जन गण को सीने से
उठा लेते हैं गोद में गली के बच्चो को प्यार से
लुभा रहे हैं कातिल मुस्कान से
चाशनी सी टपक रही है इनकी बातों से
लगता है 
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की 
भाषणों में गरजते हैं
विरोधियों पर बरसते हैं
करते हैं सियासत बात बेबात पे
कभी मंदिर मस्जिद कभी गौमांस पे
आरोप प्रत्यारोप के बादल हैं बहार पे
लगता है 
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की 
मनीषा

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