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Friday, November 20, 2015

घर अब मकान हो गया है

तेरे जाने से सब उदास हो गया है
जिसे बनाया संवारा करती थी तू कभी
वो घर अब मकान हो गया है

दरवाज़े पर कोई पद्चाप नही है
छत पर पड़ी दरार वहीं है
उस आखिरी दीपावली पर लगाया थाप वहीं है
मुंडेर पर पड़ा अधजला दीप भी अब उदास हो गया है
वो घर अब मकान हो गया है

कोई डोलियां उतरती नहीं
शहनाइयाँ अब वहां बजती नहीं
ढोलक पर थाप पड़े एक अरसा हो गया है
देहरी पर  खिलखिलाहट  गूँजे एक ज़माना हो गया है
 वो घर अब एक मकान हो गया है

दीवारें अब धीरे धीरे झरने लगी हैं
गुलाबी फ़र्श पर पड़ी काई अब छुटती नहीं है
सीढ़ियों पर आने जाने  के निशां अब मिटने लगे हैं
तेरी यादों से भरा बेमोल आँगन बिकने को तैयार हो गया है
वो तेरा घर अब मकान हो गया है
मनीषा
20 /11 / 2015

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