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Thursday, December 31, 2015

लोग कहते हैं मुबारक हो साल बदला है

ना चाल बदली है ना हाल बदला है
लोग कहते हैं मुबारक हो साल बदला है

अपनी तो वही  मस्ती फ़ाक़ापरस्ती है
बस कुछ अपनों के देखने का अंदाज़ बदला है

वो आज भी पास से नज़र बचा के  निकल जाते है
न हम बदले ना अपना आशिकी का अंदाज़ बदला है

मुफलिसी ने बदल दिए  है कुछ हालात ऐसे मेरे
दोस्तों के मिलने का बस ज़रा अंदाज़ बदला है

ना चाल बदली है ना हाल बदला है
लोग कहते हैं मुबारक हो साल बदला है
मनीषा 

Friday, December 18, 2015

क्या कहूँ के जलता है लहु मेरा

इस शहर में एक रात  दफन है
यहाँ  अब सूरज नहीं  उगता
चांदनी मर चुकी है एक भयावह मौत
चाँद सिर्फ बुझ के रह गया
चीख कर थक  चुके अब परिंदे खामोश हैं
तर्क से तर्क न्याय से न्याय ही
हार के रह गया
जिन्होंने जलाई थी मोम  की बत्तियां
उन हाथों में मोम  पिघल  के रह गया
सेक ली सब सियासत दारों ने अपनी अपनी रोटियां
हम  कमनसीबों के भाग में जूनून रह गया
क्या कहूँ  के जलता है लहु  मेरा
आज फिर एक द्रौपदी के भाग्य पर
पितामह भीष्म चुप रह गया
मनीषा