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Tuesday, August 2, 2016

इन्साफ को कुछ मरोङा है

इन्साफ को कुछ मरोङा है
इन्सान भी तो कुछ टेढ़ा है

शर्म मर गई आँखों की
आखिर हमने उसके कातिल को छोङा है
सबने सेकी अपनी रोटी
किस्सा कुछ तेरा कुछ मेरा है
वादों इरादों मे फिसल गए
दोष कुछ तेरा कुछ मेरा है
कौन उठाए अब गाँडीव
सबको रोटी के सवाल ने घेरा है
आज खबर है पहले पन्ने की
कल तुझे रद्दी में तुलना है
उस पर बीते वो जाने मेरी मैं
माफ कर मुझे नींद ने घेरा है
मनीषा

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